देहरादून । गुरुवार को उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय मुख्य परिसर हर्रावाला में आयुर्प्रवेशिका तथा गीता जयंती सप्ताह समारोह कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि आचार्य सुभाष जोशी पूर्व राज्यमंत्री, मान्यता प्राप्त पत्रकार, प्रदेश उपाध्यक्ष देव भूमि पत्रकार यूनियन, विशिष्ट अतिथि रोशन राणा, अध्यक्ष श्रीमहाकाल सेवा समिति, परिसर निदेशक प्रोफेसर पंकज शर्मा, डॉ नन्द किशोर दाधीच, डा. राजीव कुरेले तथा डा. प्रदीप सेमवाल के द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में स्वागत भाषण करते हुए डा. प्रदीप सेमवाल ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान से ही विश्व कल्याण होगा, गीता किसी एक जाति धर्म पंथ देश से ऊपर उठकर समस्त विश्व को समान भाव से कल्याण का उपदेश करती है। गीता मानव को जीवन में मानवीय मूल्यों को विकसित करने का मार्ग प्रशस्त करके सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करती है। आज जब विश्व में अशान्ति का वातावरण व्याप्त है ऐसे में गीता ज्ञान द्वारा हमें विश्व शांति को खोजने की आवश्यकता है। गीता सर्वधर्म समभाव का ज्ञान देती है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि आचार्य सुभाष जोशी जी ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता कर्म करने की प्रेरणा प्रदान करती है। अपने कर्तव्य का पालन करना ही कर्म है। गीता हमें अर्जुन के समान जिज्ञासु शिष्य बनकर ज्ञान ग्रहण करने की शिक्षा प्रदान करती है। गीता का ज्ञान अथवा अपने गुरु में निहित ज्ञान को वही शिष्य प्राप्त कर सकता है जिसके अन्दर जिज्ञासा हो। गीता हमें समाजानुकूल श्रेष्ठ कर्म में प्रवृत्त करती है। धर्म, कर्म, योग, सांख्य आदि का सही अर्थ यदि समझना है तो प्रत्येक व्यक्ति को गीता को जानना चाहिए। गीता हमें न्याय मार्ग पर चलने की शिक्षा प्रदान करती है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डा राजीव कुरेले जी ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर प्रवृत्त कर मोक्ष मार्ग प्रशस्त करती है। उन्होंने कहा कि गीता का धर्म केवल किसी एक समुदाय का धर्म नहीं है गीता का धर्म तो सभी मनुष्यों को मनुष्यत्व में रहना सिखाता है। गीता का ज्ञान शत्रु मित्र सभी को समान भाव से देखने का उपदेश देता है। गीता अहंकार रहित ज्ञान को बताकर त्यागपूर्वक अपने कर्तव्य का पालन करना सिखाती है। गीता निराशावादी व्यक्ति को आशा प्रदान करती है। गीता हमारे अन्दर स्थित जीव को परमेश्वर से जोड़ने का काम करती है।
डा. नन्द किशोर दाधीच ने अपने वक्तव्य में कहा कि गीता केवल पढ़ने के लिए नहीं है अपितु जीवन में उतारने के लिए है। अवसाद रोग की चिकित्सा करनी है तो हमें गीता एवं आयुर्वेद शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करना होगा। गीता और आयुर्वेद शरीर के साथ मन की चिकित्सा एवं आत्म कल्याण की भावना से कार्य करते हैं। एक चिकित्सक को अपने रोगी की चिकित्सा से पूर्व अपने मन व कर्म को श्रेष्ठ बनाना होगा जिससे व अपने रोगी को भी शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ होने में सहायता कर सके। इस प्रकार का श्रेष्ठ ज्ञान गीता में निहित है।
अध्यक्षीय भाषण करते हुए परिसर निदेशक प्रोफेसर पंकज शर्मा जी ने नव प्रवेशित छात्रों को छात्र धर्म का उपदेश करते हुए कहा कि गीता ज्ञान प्रेरणा प्राप्त कर प्रत्येक छात्र अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए। लक्ष्य हीन व्यक्ति कभी भी सफल नहीं हो सकता। अतः गीता हमें श्रेष्ठ लक्ष्य को ध्यान में रखकर श्रेष्ठ कर्म करने की प्रेरणा प्रदान करती है।
इससे पूर्व BAMS 2024 के छात्र-छात्राओं ने गीता में विश्व शांति के उपाय, गीता की वर्तमान में उपयोगिता, गीता का विद्यार्थी जीवन में महत्व, आधुनिक युग में गीता की आवश्यकता, गीता में आहार विवेचन, गीता में प्रतिपादित त्रिगुणस्वरूप, पुरुषार्थ एवं भाग्य आदि विषयों पर अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम में ईशा, मेघा, भूमिका, सादिया, गीता, प्रीति ने धन्वंतरि वन्दना, तथा प्रिया, माधवी, सत्यम, आयुष, दीपांशु, कमल सिंह व साहिल ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। कार्यक्रम में डा. प्रबोध येरावर, डा. आकांक्षा, डा. ऋचा शर्मा, डा सुनील पांडेय, डा ऋषि आर्य, डा. मन्नत मारवाह, डा. इला तन्ना, डा. अखिल जैन सहित सभी विभागों के प्राध्यापक, चिकित्सक व छात्र छात्राएं उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन चक्षु कुमारी व मदीहा खान ने किया।










