https://ucc.uk.gov.in/
 https://ucc.uk.gov.in/

उत्तराखंड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सेवा यात्रा,आपदा से समाज निर्माण तक, 100 वर्ष की परंपरा का जीवंत प्रतिबिंब

11

उत्तराखंड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सेवा यात्रा,आपदा से समाज निर्माण तक, 100 वर्ष की परंपरा का जीवंत प्रतिबिंब
-हरिशंकर सिंह सैनी
देहरादून, 27 अगस्त।हिमालय की गोद में स्थित उत्तराखंड केवल तीर्थों और देवभूमि के रूप में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति और सेवा के प्रखर केंद्र के रूप में भी जाना जाता है। यहाँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपने स्थापना काल से ही समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सेवा, संस्कार और संगठन की अद्भुत परंपरा विकसित की है। पर्वतीय कठिन परिस्थितियों, प्राकृतिक आपदाओं और सामाजिक चुनौतियों के बीच संघ के स्वयंसेवक निःस्वार्थ भाव से कार्य करते रहे हैं।
उत्तराखंड की पर्वतीय भूमि जितनी सुंदर है, उतनी ही संवेदनशील भी। यहाँ कभी बादल फटने से तबाही मचती है, तो कभी भूकंप और भूस्खलन से गाँव-गाँव प्रभावित होता है। ऐसी हर कठिन घड़ी में यदि कोई संगठन सबसे पहले राहत लेकर पहुँचा है, तो वह है – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस)।

विश्व संवाद केंद्र, उत्तराखंड में आयोजित पत्रकार वार्ता में प्रांत प्रचार प्रमुख श्री संजय जी ने विस्तार से बताया कि संघ आज प्रांत के हर कोने में समाज जीवन से जुड़ा है। उन्होंने कहा जहाँ कहीं भी आपदा या संकट आता है, वहाँ सबसे पहले स्वयंसेवक सेवा के लिए खड़े दिखाई देते हैं। यही संघ का स्वभाव है और यही उसका संकल्प भी।

आपदा राहत : सबसे पहले पहुँचते हैं स्वयंसेवक
उत्तराखंड में हर साल कहीं न कहीं आपदा आती है।
अगस्त 2025 में धराली (उत्तरकाशी) क्षेत्र में बादल फटने से तबाही मच गई। गाँव उजड़ गए, लोग बेघर हो गए। ऐसे में संघ के स्वयंसेवक राहत सामग्री लेकर सबसे पहले पहुँचे।
इसी तरह थराली (चमोली) में आई आपदा में भी संघ ने मोर्चा संभाला। भोजन वितरण, राहत शिविर, अस्थायी निवास – हर स्तर पर स्वयंसेवकों ने तन-मन-धन से सहयोग किया।
स्थानीय लोगों का कहना है – मदद पहुँचने के लिए संघ के स्वयंसेवक गाँव-गाँव पहुँच चुके थे। वही हमारे लिए सबसे बड़ा सहारा बने।
यही कारण है कि पहाड़ के लोग आज भी आपदा के समय सबसे पहले संघ के स्वयंसेवकों को याद करते हैं।उत्तराखंड आपदा-प्रवण राज्य है। 2013 की केदारनाथ आपदा हो या हाल के वर्षों की बादल फटने की घटनाएँ, संघ के स्वयंसेवक सबसे पहले राहत व बचाव कार्य में जुटते दिखे।
आपदा पीड़ितों तक भोजन, वस्त्र, दवाइयाँ और आश्रय पहुँचाने का कार्य स्वयंसेवकों ने अपने व्यक्तिगत प्रयासों से किया।
संघ ने दीर्घकालिक पुनर्वास पर बल देते हुए गाँवों में आवास निर्माण, विद्यालय पुनर्स्थापन और जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध कराने में सक्रिय योगदान दिया।

शिक्षा और संस्कार : भविष्य की पीढ़ी गढ़ने का संकल्प
शिक्षा और संस्कार का प्रसार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से उत्तराखंड में अनेक विद्या भारती विद्यालय चल रहे हैं, जो आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ भारतीय संस्कृति, योग और जीवन मूल्यों का संस्कार भी बच्चों को प्रदान करते हैं।
ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों में विद्यालयों के माध्यम से गरीब और वंचित परिवारों के बच्चे शिक्षा पा रहे हैं।

विद्यालयों में ‘भारतीय जीवन दृष्टि’ पर आधारित पाठ्यक्रम और सहशैक्षिक गतिविधियों के जरिए चरित्र निर्माण पर विशेष बल दिया जाता है।

संघ मानता है कि समाज परिवर्तन की सबसे बड़ी आधारशिला शिक्षा और संस्कार हैं। उत्तराखंड में कई प्रयास इस दिशा में चल रहे हैं –
दूधिया बाबा छात्रावास, रुद्रपुर : कुष्ठ रोगियों की बालिकाओं के लिए बनाया गया यह आवासीय छात्रावास एक अनोखा प्रयोग है। यहाँ पढ़ाई-लिखाई से लेकर चरित्र निर्माण तक की व्यवस्था है।

संस्कार केंद्र : बस्तियों और ग्रामीण इलाकों में बच्चों को भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों से जोड़ा जाता है। छोटी-सी झोपड़ी हो या सामुदायिक भवन, संस्कार केंद्र बच्चों के लिए संस्कार की पाठशाला बन जाते हैं।

श्री संजय जी का कहना था –
“संस्कार ही समाज की आत्मा हैं। यदि बच्चों को बचपन से सही दिशा मिल जाए, तो पूरा समाज अपने आप बदल जाता है।”

स्वास्थ्य सेवाएँ : हर गाँव तक उपचार

उत्तराखंड के दुर्गम क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा पहुँचना हमेशा चुनौती रहा है। संघ ने इस कमी को दूर करने का बड़ा काम किया है।उत्तराखंड आयुर्वेद की परंपरा का केंद्र है। संघ की प्रेरणा से चलने वाले अनेक आरोग्य केंद्र, औषधि वितरण शिविर और स्वास्थ्य जागरूकता अभियान समय-समय पर आयोजित किए जाते हैं।

पहाड़ी गाँवों में मोबाइल स्वास्थ्य शिविर पहुँचाकर महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को उपचार की सुविधा दी जाती है।

प्राकृतिक चिकित्सा और योग शिविरों के माध्यम से लोगों को प्रिवेंटिव हेल्थकेयर की दिशा में जागरूक किया जाता है।

धर्मवाला (विकासनगर, देहरादून) : यहाँ संचालित चिकित्सालय में विशेषज्ञ डॉक्टर आमजन का निःशुल्क उपचार कर रहे हैं।

चारधाम अस्पताल : केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री मार्ग पर चार अस्पताल यात्रियों और स्थानीयों के लिए जीवनरक्षक साबित हो रहे हैं।

11 चिकित्सालय : वर्तमान में पूरे प्रांत में 11 अस्पतालों का संचालन किया जा रहा है, जहाँ हजारों लोग सालाना लाभान्वित होते हैं।

माधव विश्राम गृह, ऋषिकेश : एम्स में इलाज कराने आने वाले तीमारदारों के लिए यह विश्राम गृह कम खर्च में सुरक्षित आवास उपलब्ध कराता है।

दधीचि देहदान अभियान : मृत्यु के बाद भी सेवा

ऋषिकेश में चल रहा यह अभियान समाज को नई दिशा देता है।

अब तक सैकड़ों लोगों ने देहदान का संकल्प लिया है।

अभियान के संयोजक विजय जी का कहना है – मनुष्य का शरीर मृत्यु के बाद भी समाजोपयोगी बने, यही हमारा उद्देश्य है।

यह अभियान उत्तराखंड को सेवा और त्याग की नई पहचान दे रहा है।
युवा और महिला सशक्तिकरण

संघ के विभिन्न मोर्चे – अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, सेवा भारती, वनवासी कल्याण आश्रम और राष्ट्र सेविका समिति – उत्तराखंड में युवाओं और महिलाओं को संगठित कर रहे हैं।

महिला सशक्तिकरण : आत्मनिर्भरता की राह

बस्तियों में सिलाई-कढ़ाई केंद्र चलाए जा रहे हैं।

महिलाओं को प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जा रहे हैं।

कई परिवारों की महिलाएँ अब आत्मनिर्भर होकर घर की आर्थिक रीढ़ बनी हैं।
सांस्कृतिक जागरण और सामाजिक समरसता

उत्तराखंड विविध परंपराओं और संस्कृतियों की भूमि है। संघ यहाँ समरसता और एकात्मता के संदेश को समाज तक पहुँचाता है।

दलित बस्तियों में सेवा कार्य, सामूहिक भोज और शिक्षण सहायता कार्यक्रम चलाए जाते हैं।

पर्वतीय क्षेत्रों के मेले, त्योहार और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में संघ की सक्रिय भागीदारी रहती है।

पंच परिवर्तन : शताब्दी वर्ष का संकल्प

संघ के 100 वर्ष पूर्ण होने पर उत्तराखंड में पंच परिवर्तन अभियान चल रहा है। इसमें पाँच बड़े क्षेत्र शामिल हैं –

  1. पर्यावरण संरक्षण
  2. सामाजिक समरसता
  3. नागरिक अनुशासन
  4. कुटुंब प्रबोधन
  5. स्वदेशी भाव जागरण एवं स्वाबोध

इस अभियान के तहत गाँव-गाँव में वृक्षारोपण, प्लास्टिक मुक्त अभियान, पारिवारिक संवाद, भारतीय वस्तुओं के प्रयोग जैसी गतिविधियाँ चल रही हैं।

धर्मरक्षा और आदिवासी क्षेत्र
उत्तराखंड के संवेदनशील इलाकों में धर्मांतरण की चुनौतियाँ भी सामने आई हैं। संघ ने इसका उत्तर वनवासी कल्याण आश्रमों के रूप में दिया है।

शिक्षा, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से आदिवासी भाइयों को अपनी जड़ों से जोड़ा जा रहा है।

संघ का मानना है कि धर्मांतरण रोकने का सबसे प्रभावी उपाय है – सेवा और संस्कार।

शाखाएँ : संगठन की जीवन रेखा
शाखा संघ की आत्मा है।
उत्तराखंड में आज 1400 से अधिक शाखाएँ संचालित हो रही हैं।

शाखा केवल व्यायाम का केंद्र नहीं, बल्कि व्यक्तित्व निर्माण की प्रयोगशाला है।

यहीं से तैयार स्वयंसेवक आगे चलकर समाज सेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य और आपदा राहत जैसे क्षेत्रों में काम करते हैं।

भविष्य की योजनाएँ

प्रांत प्रचार प्रमुख श्री संजय जी ने कहा
हमारा लक्ष्य है कि संघ का कार्य समाज के हर वर्ग तक पहुँचे। आने वाले वर्षों में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में और नए प्रकल्प प्रारंभ किए जाएंगे। पंच परिवर्तन अभियान के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास निरंतर जारी रहेगा।

उत्तराखंड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य केवल संगठन तक सीमित नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में समाज जीवन की धड़कन है। आपदा राहत से लेकर संस्कार केंद्रों तक, चिकित्सालयों से लेकर महिला प्रशिक्षण तक – संघ ने हर स्तर पर सेवा और समर्पण का परिचय दिया है।
उत्तराखंड की जनता का अनुभव यही है कि –
जहाँ संकट आता है, वहाँ सबसे पहले स्वयंसेवक खड़े दिखते हैं। यही संघ का असली परिचय है।
संघ की सेवा परंपरा – निःस्वार्थता का प्रतीक
संघ की विशेषता है कि यह कार्य व्यक्तिगत समर्पण और गुरु दक्षिणा की परंपरा पर चलता है। उत्तराखंड में भी यह भाव साफ दिखाई देता है। कोई बाहरी दिखावा या प्रचार नहीं, केवल समाज के लिए समर्पण।